सांवरलाल जाट – किसान परिवारों ने अपना बेटा खो दिया

प्रो सांवरलाल जाट असल मायने में गुदड़ी के लाल थे। राजस्थान के एक साधारण किसान परिवार में जन्में सांवरलाल ग्रामीणों, गरीबों एवं किसानों के सच्चे मसीहा ही नहीं, भारतीय राजनीती में अपने सादे जीवन और जमीन से जुड़े होने के कारण एक श्रेष्ठ मिसाल थे। सांवरलाल जाट एक बहुत साफ़गो इंसान थे, एक किसान और ज़मीन से जुड़े नेता। उन्हें बेईमान राजनेताओं जैसी धूर्त हसीं एवं बेईमानी भरी चालाक भाषा नहीं आती थी। प्रोफेसर सांवरलाल जाट ने जीवन की शुरुआत बतौर कॉलेज व्याख्याता के रूप में की। मौजूदा फ़ेसबुक, ट्विटर, सूट-बूट एवं लेनिन के कड़क सफ़ेदी लिए महंगे वस्त्रों  वाले नेताओं के बीच बिना किसी सूट-बूट या डिज़ाइनर राजस्थानी वर्दी के सांवरलाल जाट ठेठ राजस्थानी ग्रामीण धोती साफे में रहने वाले गुदड़ी के लाल सही मायनों में आजीवन एक आम किसान ही थे। वे विश्वविद्यालय के प्रोफेसर थे, लेकिन एक किसान की तरह जिए और ऐसे ही राजनीति की। वे कभी चबा-चबाकर नहीं बोले एवं यही उनके जीने की शैली रही।
सांवरलाल जाट का राजनीतिक सफर
साँवरलाल जाट का जन्म 1 जनवरी 1955 को राजस्थान के अजमेर जिले के गोपालपुरा गाँव में हुआ था। उन्होंने वाणिज्य में स्नातकोत्तर करने के बाद राजस्थान विश्वविद्यालय में शिक्षक का कार्य भी किया था। वे सोहलवीं लोकसभा में अजमेर लोकसभा संसदीय क्षेत्र से भाजपा के सांसद थे। 20 दिसम्बर 2013 को उन्होंने राजस्थान के केन्द्रिय मंत्री की शपथ ग्रहण की। सांवर लाल का निधन 9 अगस्त 2017 को राजधानी दिल्ली में एक अस्पताल में हो गया। जब सांवरलाल जाट केंद्र में चमचमाते मोदी सरकार के मंत्रिमंडल से हटाए और वसुन्धरा सरकार ने उन्हें राजस्थान किसान आयोग का अध्यक्ष बनाया, तब उन्होने किसान आयोग को असल में किसानों की जगह बनाई अन्यथा यह केवल सरकारी बाबुओं का एक किसान प्रवेश निषेध कार्यालय ही बनकर रह गया था। सांवरलाल जाट के नवीन राजस्थान किसान आयोग दफ्तर की फिजा ही अलग थी यहाँ आप साफा पहने हुए किसान भी आसानी से देख सकते थे जिनमें हर कौम के किसान थे। अब शायद राजस्थान किसान आयोग फिर से ग्रामीण किसानों की पहुँच से दूर हो जाये तो कोई नई बात नहीं होगी।
किसान परिवारों ने अपना बेटा खो दिया
राजस्थान के किसान परिवारों ने निश्चित ही सांवरलाल जाट के रूप में अपना एक बेटा खो दिया। पूर्व केंद्रीय मंत्री, राजस्थान किसान आयोग के अध्यक्ष व सांसद श्री सावंरलाल जाट के निधन के साथ ही राजस्थान के किसानों की एक आवाज सदा के लिए बंद हो गयी। अगर सावंरलाल जी जाट के परिवार जनों के बाद आज सबसे अधिक क्षुब्ध है तो वो हैं, राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों के किसान जिनका सरकार के साथ एक संवाद पुल ख़त्म हो गया। सावंरलाल जाट दलगत राजनीती से परे सदैव किसानों एवं ग्रामीणों के हितेषी रहे है। सावंरलाल जाट की जयपुर से गोपालपुरा, अजमेर के बीच श्रद्धांजलि सभा में उमड़ा किसानों एवं ग्रामीणों का जनसमूह उनके प्रति अपनेपन एवं प्यार का सबूत है। अजमेर संभाग के ग्रामीण क्षेत्र में 9 अगस्त को अचानक सुबह-सुबह सभी टीवी खोलते नज़र आये हमने में सही जानकारी के लिए टीवी खोला लेकिन वहां बीजेपी-कांग्रेस की गुजरात राज्यसभा के लिए खरीद-फरोख्त खबरें ही सरपट दौड़ रही थी, कुछ समय बाद शायद कोई प्रेस विज्ञप्ति के बाद ब्रेकिंग न्यूज चली लेकिन गावों में किसानों को आधे घंटे पहले ही पता चल गया था कि आज किसान परिवारों ने अपना एक बेटा खो दिया है या यूँ कहें राजस्थान की राजनीति में किसान राजनीति का अंतिम जिम्मेदार योद्धा अब नहीं रहा।
दलित राजनीती की नई डगर 
एक सबसे बड़ी सीख अगर भाजपा एवं अन्य पार्टियों के नेताओं एवं आलाकमान को सांवरलाल जाट से लेनी हो तो वो है दलित राजनीती, जिसे राजनीतिक पार्टियां केवल नारों एवं जुमलों से साधने का प्रयास कर रही है। सांवरलाल जाट का एक प्रमुख वोट बैंक था दलित समाज जिसके वे बिना किसी नारे के सबसे नज़दीक थे या यों कहे उनके प्रमुख विश्वासपात्र दलित समाज के मित्र एवं कार्यकर्त्ता ही थे। अगर किसी राजनेता को सही मायने में दलित समाज का भला करना है तो वो फोटो-सैशन, जुमलों एवं बाबासाहेब अम्बेडर जी के गुणगान करके नहीं दलित समाज के साथ आत्मीयता के सम्बन्ध बनाने एवं साथ चलने से होता है। वे एक जाट थे एवं 36 कौम के सर्वमान्य नेता थे।  यह हरयाणा बीजेपी के कुछ संकीर्ण मानसिकता के साथ 35 कौम के नारे देने वाले छुटभैये नेताओं के लिए एक सीख भी है।
राजनेताओं को सीख
वे एक सज्जन और स्पष्टवादी इनसान थे साथ ही सरल व्यव्हार एवं साफ़गोई से बात रखने वाले राजनेता थे। वे अहम् मुद्दों पर आजकल के शातिर राजनेताओं की तरह धूर्तता से झूठ बोलने, भ्रामक प्रचार एवं सवालों से कन्नी काटकर बचने वाले राजनेताओं की तरह नहीं थे, आप उनसे जब चाहे मिल सकते थे एवं एक सच्चा जवाब पा सकते थे। जाति, धर्म एवं सांप्रदायिक ताकतें सांवरलाल जाट से स्वतः ही खौफ खाते थे, वे सही मायने में सबका साथ, सबका विकास को बिना किस जुमले एवं प्रचार के जीवन में अपनाने वाले व्यक्ति थे। अपने 30 साल से अधिक के राजनीतिक सफर में वे एक सच्चे एवं ईमानदार राजनेता थे, वरना आजकल तो छुटभैये नेता भी सफेदपोश बन अवैध खनन, जमीन हड़पना, कब्जे करना एवं धार्मिक वैर-वैमन्य फैलाना सरीखे कार्यों को राजनीती की पहली सीढ़ी समझते हैं जो निश्चित ही निंदनीय हैं एवं राजनेताओं को जनता से दूर ले जा रही है। आशा करते हैं, इस माटी के लाल सांवरलाल से सभी राजनेता कुछ सबक लेंगें।

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