कनाडा के चुनावों में लिबरल पार्टी ने ज़ोदार जीत दर्ज की है, मार्क कार्नी होंगे प्रधानमंत्री. यह नतीजे उनके लिए एक मजबूत जनादेश ले कर आए हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की कनाडा के अमेरिका में विलय की धमकियों और व्यापार युद्ध ने लिबरल पार्टी की इस जीत में अहम भूमिका निभाई। चुनावी विश्लेषकों के अनुसार, शुरुआत में कनाडा में माहौल लिबरल पार्टी के समर्थन में नहीं दिख रहा था। पर ट्रंप के फर्जी राष्ट्रवाद के बयानों ने गेम ही पलट दिया।

ट्रूडो के इस्तीफे और चुनावों के बीच दो अहम घटनाक्रमों ने देश के राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया। पहला, अर्थशास्त्री और पूर्व बैंकर मार्क कार्नी को ट्रूडो का उत्तराधिकारी चुना गया। कार्नी ने खुद को ट्रूडो की विरासत से अलग किया और चुनाव को कनाडा की अर्थव्यवस्था को दोबारा खड़ी करने के अवसर के रूप में पेश किया। दूसरा, कनाडा को अमेरिका का “51वां राज्य” बनाने की ट्रम्प की बयानबाजी ने कनाडाई राष्ट्रवाद को जगा दिया और कार्नी की चुनावी लड़ाई को एक नया मकसद और परिप्रेक्ष्य प्रदान किया। कार्नी ने ट्रम्प की धमकियों और सीमा शुल्क के सामने डटकर खड़े होने के लिए खुद को सबसे लायक उम्मीदवार के रूप में पेश किया। एक सफल केंद्रीय बैंकर, जिन्होंने 2008-09 की मंदी के दौरान कनाडा और ब्रेक्सिट के उथल-पुथल भरे वर्षों के दौरान ब्रिटेन का नेतृत्व किया, के रूप में उनके रिकॉर्ड ने भी उनके मकसद में सहयोग किया।
इस बार यह हुआ कि प्रगतिशील और उदारवादी वोट लिबरल्स के पक्ष में ज्यादा एकीकृत ढंग से एकजुट हुए। जब पोइलीवर ने फेंटानिल पर कड़ी कार्रवाई की बात की, टैक्स वृद्धि का विरोध किया और विश्वविद्यालयों के लिए फेडरल फंडिंग रोकने की धमकी दी, तो गैर-कंजर्वेटिव वोटरों ने इन्हें ट्रम्प-शैली की बयानबाजी के रूप में देखा और वे लिबरल पार्टी. की ओर आकर्षित हुए। जगमीत सिंह के नेतृत्व वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी का मत प्रतिशत साल 2021 के 18 फीसदी से गिर कर महज 6 फीसदी रह गया, जबकि लिबरल्स 32.6 फीसदी से बढ़कर 43.5 फीसदी पर पहुंच गये।

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